नहीं हो तुम मगर
नहीं हो तुम मगर
कठिन बड़ी डगर,
नहीं हो तुम सगर,
बोल रहे हर- हर,
नहीं हो तुम मगर।
चले हैं हम सफर,
लगता नहीं है डर,
गये थे हम घर घर,
नहीं हो तुम मगर।
अकेले हमें चलना,
घर छोड़ निकलना,
प्रकृति होती सुंदर,
प्रकृति में ही पलना।
सांझ जरूर ढलती
दिन फिर निकलता,
कभी खुशियां मिले,
कभी दिल मचलता।
कौन साथ जग देता,
क्यों दर्द व्यर्थ लेता,
जिंदगी गुलगुनाइये,
कहते आये हैं वेत्ता।
कभी खुशी मिलती,
कभी मिलते हैं गम,
कभी दर्द सह- सह,
आंखें हो जाती नम।
प्राण बेशक जाते हैं,
साहस नहीं छोडऩा,
अपने भी पराये होते,
पराये जन खोजना।
जिंदा दिल इंसान को,
सारा जगत ही पूजता,
हिम्मत हारे जन को,
कुछ भी नहीं सूझता।
धन दौलत की चाह,
जन को दे जाए दर्द,
बिन पैसे के जीना है,
कहलाता है वो मर्द।
वक्त के साथ चलो,
वक्त साथ देता रहे,
वक्त को छोड़ देना,
मृत्यु के सम कहे।
आया जन जाएगा,
कोई नहीं है अमर,
सभी कष्ट में रहते,
नहीं हो तुम मगर।।