" नेक नीयत बाज "
" नेक नीयत बाज "
नीचे की बालकनी में
चिल्लाहट ..बाज की
सुनकर , चौंक मैं गई ....
देखा ... कर रही थी कबूतरी
बचाने का ,बच्चों को ,बाज से,
प्रयास कठिन ......।
भगाने का बाज को, मैं भी
करने लगी , अनथक प्रयास ।
पर ,हट ही नहीं रहा था वह ,
फेंका मैंने कुछ ,उसे मारने
के ख्याल से तो,उड़ गया वह।
आवाज़ आई ,थोड़ी देर बाद पुनः
फिर चिंतिंत हुई मैं ....
खा न जाए , बच्चों को वह कहीं।
खड़ी एकटक ,उसे देखती रही मैं।
नहीं ले रहा था,वह नाम हटने का ।
डंडा , एक फेंका फिर मैंने
पर इस बार वह उड़ा नहीं,
बस , सरक गया वह थोड़ा
एकटक देखे जा रहा था
वह भी ......
देखा मैंने जब, उसकी नज़रों की
सीध में , तो हुआ आश्चर्य मुझे ,
कि , नज़र उसकी बच्चों पर नहीं,
बल्कि थी रोटी के एक टुकड़े पर ।
ग्लानि हुई मुझे,अपनी सोच पर ...
जरूरी ऐसा है नहीं कि,
होता है बुरा प्राणी प्रत्येक ।
सोच होती है अलग-अलग
हरेक की .....
गलत है समझना , सभी को
एक जैसा ......
बदनाम है 'बाज ' पक्षियों पर
मारने के लिए झपट्टा ....
पर , इस बाज को ...
छोड़ कबूतरी के बच्चों को ....
रोटी ले जाते देख , धन्य हुई मैं ।
छोड़ ... कबूतरी के बच्चों को,
रोटी ले जाते देख ...
हुई मैं धन्य ....