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Rekha Bora

Abstract

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Rekha Bora

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नदी

नदी

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मैं एक नदी हूँ

हाँ मैं एक नदी हूँ

सागर

तुमसे मिलने को

तय किये हैं मैंने


कितने ही पहाड़

घाटियाँ और झरने

टकरा कर पत्थरों से

हुई हूँ लहू-लुहान भी


फिर भी तुमसे मिलने के

उत्साह में भूल गयी

वो घाव, वो पीड़ा

और अंत में तुममें


समाने को आतुर मैं

देख नहीं पायी

तुम्हारी निर्दयता

एक दिन तुमने

हाँ एक दि


तुमने पटक दिया

मुझे किनारे पर लाकर

हाँ टूट गयी थी मैं

पर..तुम..


जानते थे शायद

समुद्र का

निर्दयी होना ही तो

उसका अच्छा गुण है

न जाने कितनी लहरों के

जीवन टूट गये हैं

उसके अनिश्चित स्नेह की

प्रतीक्षा में।


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