नदी
नदी
कहने को मैं एक नदी हूँ
पर बहती हुई सदी हूँ
विपरीत दशाओं में भी जीना
मैं दुनिया को सिखलाती हूँ
दुख संताप से आहत हो के भी
हर पल बहती जाती
मैल न रखती जल में अपने
बहा इसे मैं ले जाती
पीने को देती मैं अमृत
न जल अपना संग्रह करती
मत कर मैला मेरा जल
इसे तुझे ही पीना है
मेरे अंदर भी जीवन है
सांस मुझे भी लेना है।
