नदी की आत्मकथा
नदी की आत्मकथा
मैं नदी की आत्मकथा भला किस-किस को सुनाऊँ,
शांत-मधुर रहने की कला भला किस-किस को सिखाऊँ !
क्या हो गया है जगत् वासियों ?
स्नेहमयी नदी के समान आखिर क्यों नहीं बह सकते
जीवन के सुख-दुख को भला क्यों नहीं सह सकते
अपनेपन की भावना में हम क्यों नहीं रह सकते
अपनी वेदना को अपनों से ही आखिर क्यों नहीं कह सकते।
मैं सुंदर सरिता के समान निरंतर बहना चाहती हूँ
सभी के गले का हार बन कर जीना चाहती हूँ
गागर में सागर भर कर आगे बढ़ना चाहती हूँ
अपने भीतर बस ऐसा बदलाव चाहती हूँ।
