नारीशक्ति
नारीशक्ति
नहीं बनना है मुझे कठपुतली समाज की
बनना है मुझे तो स्वाधीन नारी आज की।
शृंखलाबद्ध थी कई वर्षों से परंपराओं में
देता था हर कोई जिसे दुहाई लिहाज की।
बनकर सशक्त अबला ने तोडी दी बेड़ियाँ
जो कभी होती थी साधन केवल साज़ की।
दिया मुँहतोड़ जवाब फिरंगियों को शान से
वीरांगनाओं भी लिखी कहानी स्वराज की।
इतिहास साक्षी है वीरता की गाथाओं का
लड़ी झाँसीवाली रानी जैसे गूंँज गाज की।
नहीं असंभव कुछ भी गर ठान लेती है नारी
गूँजेंगी सदा नारी के कर्तव्यनिष्ठ आवाज़ की।
घर-आँगन से अंतरिक्ष तक पहुँची हैं बेटियाँ
बनना है मुझे आदर्श मिसाल नए आग़ाज़ की।