नारीमेव जयते।।
नारीमेव जयते।।
साथियों!
तुम्हारी भाषा में
तुम्हारी बोली में
जितने भी शब्द हैं
आग के लिए
चिनगारी के लिए
वे सभी एक जगह जुटाओ
और सँभाल कर ले आओ
जिनके पास आग न हो
वे फूस भी ला सकते हैं
या झाड़ झंखाड़
सूखी पत्तियाँ लकड़ियाँ
इससे पहले
कि शब्दों की आग
जमकर बर्फ़ बन जाए
फूस पत्तियाँ लकड़ियाँ
मारे ठंड के सिकुड़ कर
बर्फ़ की चादर ओढ़कर
सो जाएँ
हमारी धमनियों में
बहता लहू
आत्मसमर्पण कर दे
और हम लौट जाएँ
पाषाण युग से पहले की
हिमयुग की सर्द गुफाओं में
आओ
एक दूसरे के बिल्कुल
करीब आओ
आग न हो तब भी आओ
फूस न हो तब भी
सुना है
हम सबके भीतर भी
होती है आग
भाषा में न हो
तब भी
इस जानलेवा ठंड के आगे
घुटने टेकने से पहले
एक आख़िरी कोशिश करें
मुझे यकीन है
इस बार भी
ठंड को हारना ही पड़ेगा
बशर्ते
जिस भी रूप में
हमारे पास आग हो
हम सब मिलकर
उसे एक जगह जुटाएँ
ख़ुद को भी जलाना पड़े
तो जलाएँ
पर किसी भी हाल में
फिर से अपने चारों पैरो पर
खड़े होकर
उस ठंड से
दया की भीख न माँगे
जिसे हम कई बार
पराजित कर चुके हैं।।