नारी तुम अमृतधारी हो
नारी तुम अमृतधारी हो


तुम संतोष की उत्कर्ष
यह संसार तुमसे निर्मित
तुम हो ईश आशीष
नारी तुम अमृतधारी हो।
तुम जगत का मूल
हो जीवन का आधार
स्वतः सम्मान की हकदार
नारी तुम अमृतधारी हो।
तुमसे जीवन की ताल
हो सुरभित वनमाल
प्रकृति की हो सुंदर कविता
नारी तुम अमृतधारी हो।
तुम मन का अनुबंध
हो जीवन धन यंत्र
बन अन्नपूर्णा करती भोजन प्रबंध
नारी तुम अमृतधारी हो।
तुम प्रेम का घर
सुख की हो तुम खान
पौरुषता की आन
नारी तुम अमृतधारी हो।
तुमसे जीवन सुरभित
है प्रेम से परिपूरित
ममता की बरसा तुमसे
नारी तुम अमृतधारी हो।
पिया संग तुम कामनी
हो मातुल सुत संग
परिवार की हो सेवती
नारी तुम अमृतधारी हो।
बलिदानों की आन
करती जग का उत्थान
जीवन से भरी हो वृक्ष समान
नारी तुम अमृतधारी हो।
तुमसे ही बने परिवार
है तुम्हारे रूप हजार
तुम खुशियों का संसार
नारी तुम अमृतधारी हो।
बन दुर्गा हो शक्ति स्वरूप
तुम शीतला सरस्वती का भी रूप
वसुंधरा पर हो फैला प्रारूप
नारी तुम अमृतधारी हो।
पुरुष सम हर पद की अधिकारी
तुम प्रतीक हो अवतारी
त्याग दया सद्भाव की मूर्ति
नारी तुम अमृतधारी हो।
विविध रूप धर हो सृजन कर्ता
तुम ही जीवन का आधार
हो सृष्टि का चमत्कार
नारी तुम अमृतधारी हो।
अग्नि का लिए तेज
तुम हो सूरज की चमकार
बनी प्रकृति की मधुरम झंकार
नारी तुम अमृतधारी हो।