नारी नहीं अबला
नारी नहीं अबला


लोग कहते है की नारी होती एक अबला है
पर ये अच्छे-अच्छे का बजा देती तबला है
दिखने में भले ये नारी होती मासूम फूल है
पर आग को बनाती ये शबनम का फूल है
नारी में पत्थरों को पिघलाने की कला है
नारी कीचड़ को करती पावन निर्मला है
लोग कहते है की नारी होती एक अबला है
पर ये अच्छे-अच्छे का बजा देती तबला है
एक नारी सदा ही मां, बहन, बेटी बनकर,
सदा ही पूरे परिवार की हटाती वो बला है
बेटा तो केवल ही एक घर को सँवारता है,
बेटी दो घरों का करती हमेशा ही भला है
इसलिये जो व्यक्ति नारी की इज़्ज़त करता है
उस जगह को ख़ुदा सदा करता खिलखिला है