नारी हूँ, मैं कभी ना हारी हूँ
नारी हूँ, मैं कभी ना हारी हूँ


नारी हूँ मै कभी ना हारी हूँ,
पाषाण पिघलाकर बहा देती दुग्ध धारा
लगा अपना जीवन दाव पर तब बनती प्राणदा,
समक्ष प्रतिकूल- अनुकूल परिस्थिति चाहे जो हो जाय,
पोषण कर ही लेती अंकशायिनी अपने अंग- अंश का,
त्रृलोकी जहाँ स्वतः शिकस्त हो जाते है,
मै जीत के जश्न का आगाज वही से करती हूँ,
क्योंकि हर युग मे मेरी यही कहानी है,
फिर भी हार मैंने कभी ना मानी है।
हाँ, कभी था परतंत्रता की बेडी मे जकड़ा हिंदुस्तान🇮🇳
फिजाओ मे था बलिदान ही बलिदान,
इतिहास तो हमे बनाना ही था,
सर पर कफन
का सेहरा तो बंधना ही था,
वक़्त जब तटस्थ हुआ,
पर हम ना व्यथित ना विचलित हुए थे,
फिरका परस्ती का आलम लिए लाशों का ढेर लगा था,
क्योंकि फिरंगी के यूनियन जैक को तिरंगा दिखलाना था,
हमने तब भी हार नही मानी थी।
माना आज हुआ महामारी का साम्राज्य प्रबल,
माना आज हुआ देश किंचित निर्बल,
फिर भी अटल विश्वास की तरंगे कहती हैं,
कालचक्र का चक्र वलय चलेगा कुछ ऐसा बिकट,
विपत्ति- विपदा भी दहल जाए,
देख कोरोना का अंत निकट,
क्योंकि अब तक हमने हार नहीं मानी है।