नारी - एक अस्तित्व की लड़ाई
नारी - एक अस्तित्व की लड़ाई
प्राचीन समाज के मापदंड का
जो नीतिगत रूप बना,
वही नारी के प्रति पीढ़ी दर पीढ़ी
भेदभाव पूर्ण आचरण बना।
ऐसे बनकर वह एक अबला नारी
परम्पराओं में बंधकर रह गई,
पग - पग पर अपने अस्तित्व की खातिर
मानवाधिकार की लड़ाई रह गई।
कभी जातियों ने कभी धर्मों ने
कभी अपनों की बात ने
हर मोड़ पर है कुचला,
समाज की कुरूतियों में दबकर
रह गया उसका स्तर निचला।
अब आधुनिकता दौर में उसने भी
नारीवाद का नारा लेकर
महिला सशक्तिकरण का प्रण उठाया है,
असमानताओं की दीवारों को तोड़
कंधे से कंधा मिलाकर चलने का
समाज में नारी भूमिका का महत्व बताया है।
अब बदलकर रूप अपना वह शक्ति बन आई है,
हर परिस्थिति के लिए वह चुनौती बन आई है।
समाज के प्रतिबंधों से परे उसने अपने को
नए संस्कारों से सहेजा है,
नारी अत्याचार के विरुद्ध
रूढ़िवादी समाज को
अपने अस्तित्व का संदेश भेजा है।
