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नाम था मेरा दिशा

नाम था मेरा दिशा

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हर रात की तरह उस रात भी सो गया,

सुनी जब खबर तो दिल मेरा भी रो गया,

तभी कलम मेरी रो पड़ी, जैसे दिशा मुझसे बोल पड़ी।।


छम छम नन्हे पावो से

सारा आँगन घुमा करती थी,

नटखट शरारतो से अपनी

सबको खूब हँसाया करती थी,

नाम था मेरा दिशा

खुल के अपना बचपन जिया करती थी।।


अंजान थी ज़माने से

बचपन मे अपने मशगूल थी,

मैं नन्ही सी जान किसी के आंगन का फूल थी,

क्या बेटी बन पैदा होना मेरी भूल थी,

मस्ती में मस्त ज़माने से अनजान थी,

क्या मालूम था के मैं उनका अगला शिकार थी,

नाम था मेरा दिशा, अपने कुल की शान थी।।


मैं घबरा रही थी,

और वो मुझे छुए जा रहा था;

मेरे छोटे छोटे अंगो को हैवानियत से नोचे जा रहा था;

मैं दर्द से कहरा रही थी, और वो हँसे जा रहा था;

कह ना दूँ किसी से बस इसी बात का डर सता रहा था;

नाम था मेरा दिशा, और आज मेरा शिकार हो रहा था।।





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