ना जाने क्यों।
ना जाने क्यों।
ना जाने क्यों, बहुत नाराज़,
हुई वो हमसे, धरा की चाँद।
वजह भी हमें, मालूम न हमें,
नाराज़गी की, क्यों है ख़फ़ा।
पहले सदा ही, नज़र आती,
सुबह तो क्या, संध्या आती।
अब वो हमें, न नज़र आती,
कभी यारों, हमें नहीं आती।
कोशिश की, मनाने की भी,
हर तरह की, हमने की भी।
सहेली सभी, से पूछा हमने,
पर पता नहीं, नाराज़ है क्यूँ।