न तू कम थी न मैं कम था
न तू कम थी न मैं कम था
न तू कम थी न मैं कम था,
यौवन का भी अपना चरम था,
हराया था तूने पग पग मुझे ,
करूं क्या मैं भी रक्त जो मेरा गरम था।
न तूने जीतने दिया
न मैंने हार मानी,
उम्र भर चलती रही है,
बस यही कहानी।
अब तो बस कर,
मेरी मेहनत का फल मुझे दे,
कहीं इंतजार में बीत न जाये,
ये ढलती जवानी।
हाँ किस्मत तेरा नाम है
मुझे भलीभांति पता है,
तूने मुझे मेरा न दिया है,
हुई क्या ये मुझसे खता है।
अंगारों में तपाया था बदन तूने ,
समझा था धूप का राजा बनूँगा,
मौसम सदियों से सर्द चल रहा है,
अब उस बदन की नुमाईश कैसे करूँगा।
पता है तू समेट लेगी मुझे किसी दिन
पर ये साधना तो अमर होगी,
आने वाले दिनों में देखना,
हिम्मत की चर्चा शहर शहर होगी।
तुझको ये सुनाने भर से ,
मेरा कर्म न पूरा होगा,
जो देखा है पुनर्जागरण का सपना ,
सच है को बिना मेहनत के अधूरा ही होगा।
बैठेंगे न यूँ थककर,
पत्थर को हम आवाज़ से तोडेंगे,
पर पता नही आज भी दिल कहता है,
हर लक्ष्य की बांह मरोड़ेंगे और कमर को तोडेंगे,
बांह मरोड़ेंगे औऱ कमर को तोडेंगे।
कर्ण जैसा वक्षस्थल विशाल क्या तू इसको तोड़ेगी,
शिखण्डी की ये कमर नही है जो तू इसको मरोडेगी,
ठहर जरा सुन के जा,
ये प्रतिज्ञा मेरी भीष्म के जैसी
अब तुझसे कोई प्रीत नही होगी,
कृष्ण के जैसा योग है मेरा
देख तू जरा देख जीत अंत मे मेरी ही होगी।