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Kapil Gaur Sahayak

Abstract

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Kapil Gaur Sahayak

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टपरी

टपरी

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बड़े खुश नजर आ रहे हो 

इन सर्द सुबहों में आजकल,

लगता है कोई मिल गया होगा,

सुना है चाय पीना बंद कर दिया है,

तो फिर यकीनन कहीं दिल लग गया होगा।


तुम इश्क़ करो हम बस तमाशा देखेंगे,

तुम्हारे जलते हुए दिल की अग्नि से,

सर्दियों में अपने हाथ शेकेंगे,

अगर कभी हार जाओ इन झूठे रिश्तों से,

तो याद रखना


उस टपरी पर हम आपका इंतजार देखेंगे,

चले आना गले लगकर रोने को बेझिजक होकर,

मुद्दतों के बाद 

फिर से शुकुन की एक एक चुस्की ले लेंगे।


मुझको पता है ऐसा जरूर होगा,

की वो इश्क़ में धोका खायेगा ही,

दिन में घूम ले कहीं भी ,


शाम को घर जाएगा ही,

जिस दिन पता चलेगी औकात इस जमाने की,

देखलेना लौट कर इस टपरी पर आएगा ही।


ए चाचा अरे ओ टपरी वाले चाचा,

जब वो वापस आये तो एक एहसान कर देना,

उठाना पैमाना और अबकी बार चाय से भर देना।


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