न शब्द मेरे न भाव मेरे
न शब्द मेरे न भाव मेरे
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भागते रहे कुछ पाने को,
धुन थी कुछ कर जाने की,
पर ये कैसी उलझन हैं,
जैसे कुछ खोते जाने की।
जब देखा,तब तुझे ही पाया,
मन मे तू सदा मुस्काया,
कहता रहा मुझसे है पल,
क्या खोज रहा हैं पगले
राह थोड़ी तो थाम ले
मैं तू हूँ तेरे अंतस में
फिर कहा कहा तू मुझको खोजे
खुशियां तो तेरे पास
फिर मृगतुल्य तू कस्तूरी खोजे
मौन हो गई अब मेरी वाणी
न लिखनी फिर नई कहानी
न कुछ अब मुझे खोजना
न कुछ अब नया हैं कहना
मौन ही अब शब्द हैं
मौन से निकली हर रचना हैं
लिखवा रहा हैं सब तू
परम रचनाकार है तू
मेरा न कुछ अपना है।