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Rajeev Thepra

Abstract

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Rajeev Thepra

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न जाने क्या तो होता रहता है

न जाने क्या तो होता रहता है

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क्षितिज के तट पर जाकर हमको भूल जाता है 

क्षितिज को तकते-तकते हमको रोना आता है!!

तेरे जाते ही हमें कोई अँधेरा चुपचाप घेर लेता है 

गोधुरी बेला में जब तू हमको छोड़ चला जाता है!!

तेरे रहते तो ये दुनिया कितनी रौशन लगती है 

तेरे ना होने पर इतना अपार सूनापन सताता है!!

सुबह-साँझ तलक रौशनी-ऊर्जा बांटता फिरता है 

बिन बोले ही तब तू थककर चुपचाप सो जाता है!!

रातों को देखा हुआ इक सपना दिनभर मचलता है 

रात आते ही जो फिर से जाने कहाँ से घुस जाता है!!


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