न दिखेंगीं न ही सुनाई देगीं
न दिखेंगीं न ही सुनाई देगीं
इन्तज़ार करने वाली आँखें, कुछ सुनने को बेताब आँखें
आँखों से ही सुनतीं थीं, अब कानों ने साथ छोड़ दिया था
बहुत कुछ खाने का मन करता था उनका
लेकिन अब छोटी बड़ी सब इन्टैस्टाइन ने
उनका साथ छोड़ दिया था
हाँ वहीं, अब न तो दिखेंगीं और न ही सुनाई देगीं
देखते ही मुझे आँखे चमक जाती थीं जिसकी
उठकर बैठ जाती थीं, मुझे अपने पास ही बिठाना चाहतीं थीं
मेरे होठों को पढ़-पढ़ कर और कभी हाथों के
इशारों को समझ कर, हर बात का जवाब देती थीं
अब न तो बोलेंगीं और न ही सुनाई देंगीं
मेरी तबियत खराब है, आजा चक्कर लगा जा
और बस यही कि, तू ठीक है ? सब ठीक हैं ?
वो आई थी, वो भी ठीक है न?
यही हर फ़ोन कॉल पर उनकी मुझसे बातचीत होती थी
अब न तो ज़ोर- ज़ोर से बुलवाएँगीं और न ही बतियाएँगीं
जल्दी-जल्दी आया कर, इतने दिनों बाद आई है,
मेरा दिल घट रहा है, अब नहीं बचूँगीं, अब समय आ गया
उनका आवाज़ में और दर्द लाना ताकि मैं जल्दी मिलने पहुँचू
लेकिन अब अब न तो बुलाएँगीं और
न ही किसी से कॉल करवाएँगीं
मैं हूँ जो भी आज, उन दोनों के कारण ही हूँ,
प्यार-दुलार, डाँट-फटकार
संस्कार, सलीका, बात करने का,
दूसरों से मिलने का, ईमानदारी और सच्चाई का
सब कुछ देने वाले दे गए मुझे ये आशीर्वाद,
रहो हमेशा तृप्त और दूसरों के आने वाले काम
लेकिन अब, वो भी, जनक की तरह
न दिखेगीं और न ही सुनाई देंगीं
सभी पौधे बिन सिंचन रो पड़े,
अम्बर हैरान और वीरान हो पड़े
सब कह रहे थे बाहर मत निकलना,
बाहर एक दानव अपने पँजे फैलाए खड़ा है
लेकिन वो तो घर से ही ऐसे रुख़सत हो गईं
जैसे कोई उन्हें बाहर पुकार रहा है
सिर्फ़ यादें दे गईं इतनी जिन्हें
याद करते-करते एक जन्म भी होगा कम
वही मेरी माँ अब २०.४.२० से न दिखेगीं और न ही सुनाई देगी
वही मेरी माँ अब न तो दिखेंगी और न ही सुनाई देगी।