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निशान्त मिश्र

Abstract

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निशान्त मिश्र

Abstract

" मुश्किल है सबको समझाना "

" मुश्किल है सबको समझाना "

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बहुत जरूरी है जीवन में

एक तथ्य को अपनाना

उसको समझाओ, जो समझे

मुश्किल है, सबको समझाना


सबका अपना अपना पथ है

सबकी अपनी अपनी परिणति

सूर्य सदृश वो चमक सका है

जिसने अंतर्मन को जाना

मुश्किल है सबको समझाना।


आशाओं की राह देखते

मुमकिन है कि शाम मिले

उचित नहीं सबके आगे ही

दिव्य करों को फैलाना

मुश्किल है सबको समझाना


चले अकेले पथिक कभी थे

जब था ये पथ, अनजाना

क्या दुष्कर, क्या सरल है इसमें

चलकर ही तुमने जाना

मुश्किल है सबको समझाना।


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