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मुसाफिर

मुसाफिर

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जाने क्यूँ लोग कहते कि काफ़िर हूँ

राह चलता मैं तो बस एक मुसाफ़िर हूँ ......

समझ नहीं आती ये बातें लोगों की

कभी तारीफ़ तो कभी तौहीन की

भौकते है लोग मैं जिता "उसके" खातीर हूँ

राह चलता.....

दुनिया वाले डूब रहे है पैसों के समन्दर में

जिंदगी गवां रहे है कागजों कि कश्ती में

अपने लिये जी लूं इतना मैं शातीर हूं

राह चलता.....

बिना मेहनत के आसमाँ छुना चाहते हैं

पल में रुका दे जिंदगी ऐसे शौक पालतें है

खुद कमाके खाऊं इतना मैं काबिल हूँ

राह चलता.....

कहते कुछ तो दिल में छिपाते कुछ और हैं

माँ बाप भी बच्चों को सिखाते कुछ और है

जिंदगी से सिखो यही कहने हाज़िर हूँ ...

राह चलता.....


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