मुंबई लोकल
मुंबई लोकल
मुंबई लोकल का,
क्या कहना है भाई,
चढ़ जाते हैं सब,
पर सबको होती है घाई !
रोज़ करना पड़ता है,
चढ़ने उतरने के लिए फाइट,
कर देती है भीड़,
अच्छे अच्छों की हवा टाइट !
आज फिर हो गयी है ट्रेन लेट,
करा रही है सबको बेसब्री से वेट,
आ गयी है ट्रेन भरे पड़े थे गेट,
बड़ी मशक्कत के बाद,
हम भी हो गए सेट !
लोकल का सफ़र भी,
बड़ा अजीब है,
विंडो वाली सीट चाहते हैं सब,
पर होती किसे नसीब है !!
भीड़ में ऊपर रखा बैग,
जोर से सर पर टकराया,
जिसे देख गुस्सा तो बहुत आया,
सोचा क्यों बात को बढ़ाना है,
साला कल फिर इसी ट्रेन से आना है !
दिन हो या रात,
भागती रहती है हर पल,
सच में मुंबई की,
लाइफ लाइन है लोकल !!