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Neeraj Arya

Drama

5.0  

Neeraj Arya

Drama

मुलाज़िम बेग़म

मुलाज़िम बेग़म

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गई रात महल में, थी आई रानी चुपके से
नशे में धुत, थे कदम उसके बहके से।
रानी के एक एक डोले पग पर डोली राजा की इज़्ज़त थी
ब्याह लाए जो बेग़म, वह देवदासी से कम न थी।
रानी की मदहोशी ने भेजा बुलावा खबरी को
बोला राजा पता करो, कहाँ जाती रोज़ रजनी को।
इतना सुन रूह ने उसकी उसे झंझोर दिया
तफ्तीश करूँ अपनी माँ की, किस धर्मसंकट में मुझको झोंक दिया।
पर राजा ही रब है, ये यहाँ का दस्तूर था
बंदिशो से बँधा खबरी, मुरव्वत को मज़लूम था।
नून जो खाया, उसका कर्ज़ तो चुकाना था
रानी का पीछा किया, कहाँ इसका रैन ठिकाना था।
लैल को बुरखे में दोज़ख में जाते देखा
पर जन्नत है ये वालिदा की, इतना था अंदेशा।
रूह को अपनी गिरा के उतारा कर्ज़ का वह घेरा
लौट कर के बादशाह को दे दिया सब ब्यौरा।
अपनी इज़्ज़त पानी में मिलती देख वह घबराया
खबरी के ही हाथों फिर रानी को बुलवाया।
निकालके अँधेरों से कल के, लाया आज के इस नूर में
मुलाज़िम थी तू कोठे की, मैंने रानी बनाया तुझे।
लगा के शान को मेरी सीने से, रोज़ाना जाती है कहाँ
बोल बेगैरत, मान को मेरे फरोख़्त कर आती है कहाँ।
इतना सुन रानी के लब मंद मंद मुस्काए
देख नज़र शौहर के नफ़रत, अल्फाज़ आज बयां सब कर पाए।
नाच सर ताज कर, लेकर आई थी जो सपने
तेरी इज़्ज़त ने रौंदे सारे, यहाँ बेगाने लगे सब अपने।
ऐ रुत्बे का डमरू पीटने वाले, ये बात तेरा मान नहीं सुन पायेगा
खबरी को आगे करके बोली, ये सच...ये सच तेरी शान पर चढ़ डोल जाएगा
कुंवारी दासी की ये औलाद, दुनिया से अंजान है
बरसो पहले तेरे करतूतों की संतान है।

फिर आगे यूँ कहती है...
नाच सर ताज कर लेकर आई थी जो सपने
तेरी इज़्ज़त ने रौंदे सारे, यहाँ बेगाने लगे सब अपने।
नहीं रास आई तेरी दौलत, ना रमी सोने की दीवारों में
लांघ कर सब हदें, लौटी अपनी मजनून दुनिया में।
तोड़ बंधन बाँध पायल आज मलंग हूँ अपने रंग में
माना दोषी हो सकती हूँ इन्साफ के इस जग में।
तेरी उसूलों की डोर से बंधी इस बुत ने, नहीं आज तक कुछ माँगा
ऐ खुदा...आज फ़रियाद कर रही आज़ादी की, तू करदे इसे रिहा
याह अल्लाह...आज फ़रियाद हो रही आज़ादी की, तू कर दे इसे रिहा
तू कर दे इसे रिहा।
इतना सुन शहंशाह की शमशीर यूँ तन गई
और देखते ही देखते लाल लहु में वह सन गई।
देख खून माँ का, रूह उस की काँप गई
दिल फूट कर रोया, फिर मन पर ये तसल्ली छा गई
रानी को जो मिली, वह मौत नहीं रिहाई थी
रूह उसकी सुकून से है, क्योंकि मिली उसे जो आखिरी उसकी ख्वाइश थी।


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