मुक्तक
मुक्तक
हमें ज़ख़्म की दूकान बताते चले गए
हमारे ज़ख़्म पर नमक लगाते चले गए।
एक ग़म में डूबा हुआ शायर हूं दोस्तों
किस्से हमारे अश्क डुबाते चले गए।
हमें ज़ख़्म की दूकान बताते चले गए
हमारे ज़ख़्म पर नमक लगाते चले गए।
एक ग़म में डूबा हुआ शायर हूं दोस्तों
किस्से हमारे अश्क डुबाते चले गए।