मुखौटा...!
मुखौटा...!
अजब दुनियाँ हो गई,
ग़ज़ब के हो गये लोग,
कुछ भी हो जाये,
कहते हैं ये तो था संयोग,
होश कहाँ किसी को,
सब नशे कि मस्ती में झूम रहे हैं,
चेहरों पर बनावटी मुखौटा लगाए घूम रहें हैं!
इंसान का इंसान को देखने का,
नजरिया बदल गया है
भाई चारे का तो सब जरिया बदल गया है,
किसी का अपना चेहरा नहीं,
बस धोख़े में जिए जा रहें हैं,
जिंदगी अमृत है,
लोग ज़हर समझ के,
पिए जा रहें हैं,
होश कहाँ किसी को,
सब नशे कि मस्ती में झूम रहें हैं,
चेहरों पर बनावटी मुखौटा लगाए घूम रहें हैं!