मुख पे मुस्कान सदा उमड़ता हैं
मुख पे मुस्कान सदा उमड़ता हैं
क्रोध रूप में काली बन जाती हैं,
दुर्ग रूप में रखवाली बन जाती हैं,
आदर और सम्मान जहां पाती हैं,
कभी लक्ष्मी कभी सरस्वती बन जाती हैं !
जगत की जननी बन जाती हैं,
मातृ रूप का मन बन जाती हैं,
सब घर में गृहलक्ष्मी कहलाती हैं,
मां,बहन, भाभी सब बन जाती हैं !
मुख पे मुस्कान सदा उमरता हैं,
ख़ुशियों का भाग्य इन्हीं से खुलता हैं,
यहीं इस जग़ की रचयिता हैं,
इन्हीं से पौरुष का जीवन संवरता हैं !
हे नारी जन जन तुम्हें प्रणाम करता हैं,
बिन तेरे कहां कोई नया काम करता हैं,
तेरे गौर रूप देख दुख पीछे हट जाता हैं,
तेरा सौंदर्य देख सुख संवर जाता हैं !
