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मुझमें यही ख़राबी है

मुझमें यही ख़राबी है

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मुझमें यही ख़राबी है,

मैं भी वैसा करता हूँ, जो जैसा करता है।

क्या करूँ ज़िंदगी को क़रीब से देखा है,

इंसानों को रंग बदलते देखा है।।


मुझमें यही ख़राबी है,

मैं वैसा ही बनता हूँ, जो जैसा बनता है।

क्या कहूँ दस्तूर ही है कुछ ऐसा ज़माने का

ख़ुद पर यक़ीन ही प्रमाण है जीत का।।



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