मुझे पागल दीवाना कौन कहेगा
मुझे पागल दीवाना कौन कहेगा
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मुझे पागल, ज़िद्दी और दीवाना कौन कहेगा
तुम ना रहोगी तो ये अफ़साना कौन कहेगा
जिसके दर पर दिन रात अलख जगाता है तो
इबादत को इश्क़ का नज़राना कौन कहेगा
हर बार ही इश्क़ नया एहसास देता है यहाँ पे
क्योंकि इसको कभी भी पुराना कौन कहेगा
जिसको ज़िन्दगी की सारी जागीरें सौंप दी हो
लूट गया है जो उसको खज़ाना कौन कहेगा
जानबूझ कर जो अब अनदेखा करने लगे तो
कभी भी इसको जाना-पहचाना कौन कहेगा
देख कर चेहरा उनका लब खामोश हो गया है
बताओ इसको "इश्क़" जताना कौन कहेगा।