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Abhishek Gangan

Tragedy

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Abhishek Gangan

Tragedy

मुझ को डर लगता है

मुझ को डर लगता है

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क्यों आते हो अंकल, मुझ को डर लगता है।

क्यों बात को नहीं समझते आप,

नहीं खेलना मुझे उन खिलौनों से,

जिनसे मुझ को दर्द होता है,

क्यों आते हो अंकल, मुझ को डर लगता है।


क्यों आते हो अंकल, मुझ को डर लगता है।

जो बिस्तर पे मम्मी प्यार से सुला देती है,

तो बहाने करके जो करीब आते हो,

चुभती है मुझ को ये मूँछे आपकी,

जो मेरे पेट से हो के गुज़रते हो,

क्यों आते हो अंकल, मुझ को डर लगता है।


क्यों आते हो अंकल, मुझ को डर लगता है।

मम्मी कहती है कि घर की नन्ही चिड़िया हूँ मैं,

आप कैसे एक नज़र में मेरे घोंसले में आग लगाते हो,

और कैसे उन हाथों से मेरे पंखों को बिखेर देते हो,

क्यों आते हो अंकल, मुझ को डर लगता है।


क्यों आते हो अंकल, मुझ को डर लगता है।

अब सांस लेने में भी मुझ को खौफ लगता है,

इतना खून मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा है,

मम्मी-डैडी से आँखें मिलाने को भी अब

अजीब लगता है,

क्यों आते हो अंकल, मुझ को डर लगता है।


क्यों आते हो अंकल, मुझ को डर लगता है।

पर अब शायद चुप्पी तोड़ने का वक़्त हो गया है,

कल मैं आपके दरिंदे हाथों को काट खाने वाली हूँ,

कल आखिरी बार खामोशी से,

और पहली बार चिल्ला के मैं ये कहने वाली हूँ कि,

मत आओ अब अंकल, मुझ को अब डर नहीं लगता है।

मत आओ अब अंकल, मुझ को अब डर नहीं लगता है।



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