कवि
कवि
अगर मर भी जाऊं कल को मैं,
तो वजूद मेरा स्याही के गंध में ज़िंदा रखना,
मेज़ पे पड़े फटे पन्नों की तरह,
फटी मेरी ज़िन्दगी को याद रखना।
कह देना मेरी कल्पना से,
जो मेरी हर कहानियों में रहती थी,
कि मर भी जाऊँगा इक रोज़ में,
फिर भी शब्दों में मेरे, वो ज़िंदा रहेगी।
साँसों में मेरे जब जान नहीं होगी,
मेरी ही कहानियां सुना देना मुझको,
मेरे जान-ए-जिगर के कई अक्स,
छोड़े है मैंने उनमें।
और फिर मेरी साँसों से कह देना,
कि आस छोड़ दे ज़िंदा होने की,
कि शब्द मेरे बड़े खुद्दार है,
कल जान भी अगर छोड़ी थी मैंने उन में,
वो आज मेरे नज़्मों का घर नहीं छोड़ेंगे।