मुहब्बत की आरजू
मुहब्बत की आरजू
दें आया हूँ मैं दिल निकाह में
मेहर दूं भला क्या पनाह में
गुजरा आज भी दिन उदासी में
किसी की बसा कब निग़ाह में
नहीं झूठी दूंगा गवाई वो
बोलूंगा सच की मैं गवाह में
हवायें चलाता मुहब्बत की
ताक़त सिर्फ़ देखो अल्लाह में
निकला और वो दिल फरेब है
जिसकी मिट गया हूँ मैं चाह में
घर आने में ही देर यूं लगी
कोई मिल गया था कल राह में।
आज़म नैय्यर