मत रो मेरे मन
मत रो मेरे मन
तोड़ दो अब चुप्पी सहते अत्याचारों से,
पल पल दर्द दे रहे जो मानसिक प्रहारों से।
नश प्रभात की नव वेला में संवेदनाएँ सहम जाएँ,
रोक लो वेदना को दुनियाँ के अतिचारो से।
अश्क बहा लिए मानसिक वेदना से बहुत तुम ने,
जान लो धरा पर मौजूद हैं अपने अधिकारों से।
मानसिक आहतो दर्द का एहसास ने मन को तोड़ दिया,
खुदा कोई तो राह दिखा मुझे, निकालो गम के गलियारों से।
क्यों लोग जिदंगी मेरी तबाह करने में तुले हैं,
दर्द की गहराइयों को नापु कैसे आकारों से।
घुट घुट कर कब तक अकेली एक कमरे में बंद रहूँ,
मेरे मालिक ऐसे किरदारों को सजा दे अपने हथियारों से।
दिल चाहता है मेरा मैं भी सज धज कर कहीं बाहर जाऊं,
किसी की नजर ना लगे मेरे सोलह श्रृंगारों से।
