मत नाच इशारों पे
मत नाच इशारों पे
अपनी भी तो ऊँची सोच रख मीनारों पे
क्यों रोल रहा जीवन किसी के इशारों पे
थामी पतवार जो तूने नज़र रख किनारों पे
क्यों डूब रहा मझधार किसी के इशारों पे
क्यों झोंक रहा खुद को जलते अंगारों पे
मत जला हस्ती अपनी किसी के इशारों पे
क्यों मजबूर है चलने को नंगी तलवारों पे
है नाच रहा क्यों तू औरों के इशारों पे
क्या लाभ है तेरा चढ़ने का इन दीवारों पे
मत कर यूँ बर्बाद ये जीवन गैरों इशारों पे
क्यों अफ़सोस तुझे है औरों की बहारों पे
क्यों जहर रहा है घोल तू औरों के इशारों पे
बोझ अपने आप का मत डाल कहारों पे
क्यों भार बना है धरती पे औरों के इशारे पे।
