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Vaidehi Singh

Abstract

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Vaidehi Singh

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मस्तों की टोली

मस्तों की टोली

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रो देने पर आँसू पोंछते हैं, 

मेरी खुशी में खुश होने पर नहीं संकोचते हैं।

जिनका गाली देना भी गुस्सा नहीं दिलाता, 

हर दूसरे दिन मेरे घर पहुंच जाते, भले ही मैं उन्हें नहीं बुलाता। 

बाँटते आपस में सबकुछ, चाहे हो कंपट की गोली, 

लड़ते-लड़ते भी हँस देते, ऐसी है ये मेरी मस्तों की टोली। 


घर पर मेरी माँ से मेरी शिकायत करते थकते नहीं हैं, 

पर मेरे बड़े-बड़े राज़ दिल के संदूक में बंद करते वही हैं। 

चाहे कितना भी दुःखी मैं, गुदगुदा कर हँसाते हैं, 

पर मजाक बनाने के लिए, मुझे ही जाल में फँसाते हैं। 

बड़े गर्व से दावत की बात करते हैं, भले ही हो खाली झोली, 

मेरी माँ को अपनी माँ कहते, ऐसी है ये मेरी मस्तों की टोली।


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