मस्तमौला
मस्तमौला
उन्माद की बारीकियों से
वो भी रूबरू हो रहे हैं
जिन्हें ख़बर ही नही
मौसिक़ी के तरन्नुम की
यदा-कदा बहक जाने के शौकीन
कह रहे हैं हम तो
मस्तमौला हुए है
बहारों के आशिक़ नज़र आ रहे वो
पतझर के बरसने से जो
खुश हो रहे थे
मिट्टी के मकानों को
घरोंदा है कहते
जहाँ लोग बसते है
लेकिन रूहें नदारद है
अपने ही जिस्मों से.....

