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Amit Kumar

Abstract Tragedy Inspirational

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Amit Kumar

Abstract Tragedy Inspirational

सलाम

सलाम

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तुम जो कह रहे थे

यह सलाम उनका है

जो मजबूर है

मज़दूर है

यह काम उनका है

जिसने बनाये महल है

वो खुद रहता है

फुटपाथ पर

लोग कहते है

कि यह फुटपाथ भी उनका नहीं

फिर वो घर कहाँ है

जो उनका है

वो अंधेरों में

बनकर दीया जलता है

अपनी मेहनत के दम से

जाने कितनी तक़दीरें

बदलता है

खुद बेबस है

खुद में लाचार है

जो बना सकते है

घर उसका

वो घर में क्यों रहे

जब यह खुला आसमान

घर उनका है

पैसों का इतना गुमां भी

ठीक नहीं है दोस्तों

उनके बिना कुछ नहीं है

यह भी तुम जान लो दोस्तों

जब उठाने होंगे

अपनी जिम्मेदारियों के बोझ

बनकर कुली उनकी तरह

तब तुम ही कहोगे

यह काम हमारा नहीं

अब काम उनका है.......

        


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