मशगूल इंसान
मशगूल इंसान
खरीदने और बेचने में मशगूल इंसान,
कहीं इस छलावे में तो नहीं।
खर्च होती है तो होने दो।
कल नई ख़रीद लेंगे।
दूर कहां हमारे आस- पास ही तो है।
कभी भी समेट लेंगे।
जब सुनामी का जोर होगा।
भूकंप का हड़कंप और शोर होगा।
तो एक टुकड़ा प्रकृति का घर में भर लेंगे।