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Shailaja Bhattad

Abstract Tragedy

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Shailaja Bhattad

Abstract Tragedy

मशगूल इंसान

मशगूल इंसान

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खरीदने और बेचने में मशगूल इंसान, 

कहीं इस छलावे में तो नहीं। 

खर्च होती है तो होने दो। 

कल नई ख़रीद लेंगे।

दूर कहां हमारे आस- पास ही तो है।

कभी भी समेट लेंगे। 

जब सुनामी का जोर होगा। 

भूकंप का हड़कंप और शोर होगा। 

तो एक टुकड़ा प्रकृति का घर में भर लेंगे।



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