मृत्युलोक में अनुभूति स्वर्गिक
मृत्युलोक में अनुभूति स्वर्गिक
मुक्ति चाहते हैं सब बंधन से
रहना चाहते हैं सब स्वच्छंद।
पास न फटके कोई भी दुःख
जीवन में बस केवल आनंद।
सुख-दुख हैं जीवन के हिस्से
सब करते प्रभु से हैं विनती।
खुद की त्रुटियां बिसरा देते हैं
दूजे की एक-एक की गिनती।
चाहत होती है हर दिल की
उसको मिले सभी से प्यार।
प्रतिध्वनि वैसी मिलेगी हमको
जैसी ध्वनि का किया उचार।
जो प्यार किया अपने-अपनों से
तो हित चिंतक होंगे बस कुछ एक।
बेशर्त प्यार किया जो सबको ही
होंगे तब हित चिंतक विपुल अनेक।
मृत्युलोक में अनुभूति स्वर्गिक
उपज के रह पाएगी बरकरार।
जब सब अंतर्मन से ही मानेंगे
सकल जगत को निज परिवार।
