मोक्ष
मोक्ष


नींद में एक सपना देखा
न जाने किस जगह पर था
बस सफ़ेद रौशनी दिख रही थी
जिस के पीछे चला जा रहा था
न कोई होश नाही कोई उमंग
न कोई जान नहीं कोई पहचान
थी तो बस वो सफ़ेद रौशनी
जिस के पीछे चला जा रहा था
न दौड़ पा रहा था न रुक पा रहा था
सपने में कैद बस चला जा रहा था
पाँव भारी से होने लगे थे
बदन टूट सा जा रहा था
न जाने किस दिशा में जा रहा था
थी तो बस वो सफ़ेद रौशनी
जिस के पीछे चला जा रहा था
अहसास हुवा की सब छूट चुका था
सारे पाप द्वेष से मुक्त हो चुका था
लगा ना था ये लम्हा इतना आसन होगा यहाँ
सच की खोज में तुझे ही ढूंढ लूंगा यहाँ
अब मुक्त हो चुका था
आपने आप को प्रभु को सौंप चुका था
न यहाँ रुकने का मन था
न वापस जाने की इच्छा
थी तो बस वो सफ़ेद रौशनी
जिस के पीछे चला जा रहा था
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ऐसे तो कभी न देखा था
बस घर मंदिरों में पूजा था
वो सफ़ेद रौशनी नई प्रभु की परछाईं थी
जिस के पीछे चला जा रहा था
अचानक रौशनी रुकी लिया उसने एक स्वरूप था
आँखें बंद की फिर भी दिखा उपर गज-मुख था
नींद खुली हुआ नया सवेरा था
तुझे पाकर धन्य में हुआ था
फिर अपने आप को वहीं पाया जहाँ छोड़ा था
थी तो बस वो सफ़ेद रौशनी
जिस के पीछे चला जा रहा था।
ऐसे तो ख्याल कई बार आए थे
अपने आप से दूर कई बार हुआ था
इन काटती काली रातो में कुछ
ग़ुम सा था पीछा करूँ उसका
वो थी सफ़ेद रौशनी जिसके
पीछे चला जा रहा था।
कुछ डर सा नहीं था कोई घबराहट सी नहीं थी
खाली पन्नों में वो कुछ स्याही सा था
अक्षर भी थे लिखावट भी थी ज़िन्दगी के
हर मोड़ पे रुकावट भी थी
पर मैं तो चल पड़ा था उसी किसी दिशा में
थी तो बस वो सफ़ेद रौशनी
जिस के पीछे चला जा रहा था।