मोक्ष
मोक्ष
हम छोटे से बड़े हो जाते हैं
उसी तरह
जैसै करता है वह तपता गोला
पूरब और पश्चिम
उसी एक आकाश में
पाने को एक आकार।
या क्षितिज की सुन्दरता
या फिर उस लता की तरह
जो वशीभूत करती है
उस वृक्ष को
ऊपर चढ़ने, पसरने को
तृप्ति, प्राप्ति, मोक्ष
एक जागृति।
छोटे थे
बातें बड़ी-बड़ी थी
निर्जीव खिलौने, वस्तुओं के
मन को पढ़ना, झाँकना
उनके कानों में
शब्दों को छोड़कर।
सीधे उनके मन पर
अंकित करने को
फिर एक उजली खिलखिलाहट
एक स्पर्श।
ट्रेन में हमेशा
खिड़की के पास बैठना
और अपने दोनों
हाथों को फैलाकर
चलते-फिरते
पेड़....नदी....पहाड़....को
छूने की कोशिश
एक संतुष्टि।
कहानियों में जीना
दादी-नानी की
परी और राक्षस वाली कहानी
ख़त्म हो जाती थी
तलवार की एक नोंक पर
चीरते हुये राक्षस का कलेजा
एक अंत।
कहानियाँ अभी भी
अंतहीन
हम छोटे से बड़े हो गये हैं।
