STORYMIRROR

V. Aaradhyaa

Classics

4  

V. Aaradhyaa

Classics

मोहे ना भाँग घोटना

मोहे ना भाँग घोटना

1 min
219

गौरा ब्याही गई ज़ब शंकर से ;

बनी वाग्दत्ता पुलकित हृदय से !


पदार्पण किया शिव जी के अंगना ;

रसोई में नज़र आया भंग घोटना !


शिव औधड़ से की विनती गौरा ने ;

बड़े मान से खड़ी होकर तुलसी चौरा में !


स्वामी शिव जी,मौसे भांग न घोटी जावे ;

मैं भांग जो घोटुं हाथों में छाले पड़ जावें !


शिव जी बोल पड़े अधिकार भाव से ;

तनिक रोष और तनिक प्रेम भाव से!


सुनो, देवी पार्वती, मेरी गौरा प्यारी ;

मेरे मन में बसी हो जैसे फुलवारी !


भंग घोटना तो है एक बहाना प्रिये ;

तुम को निरखूँ और बसाऊँ अपने हिये !


तू है मेरी अर्धांगिनी अति प्रिय गौरा ;

तुझ बिन न किसी पर अधिकार मोरा !


सुनकर शिव भोलेनाथ की मधुर बोली ;

गौरा विहंसी पर मुख से ना कुछ बोली !


ऐसी प्रीत पुरातन जो किंचित लखे कोई ;

मनभावन सहचर के संग अति सुख होई !



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics