मोहे ना भाँग घोटना
मोहे ना भाँग घोटना
गौरा ब्याही गई ज़ब शंकर से ;
बनी वाग्दत्ता पुलकित हृदय से !
पदार्पण किया शिव जी के अंगना ;
रसोई में नज़र आया भंग घोटना !
शिव औधड़ से की विनती गौरा ने ;
बड़े मान से खड़ी होकर तुलसी चौरा में !
स्वामी शिव जी,मौसे भांग न घोटी जावे ;
मैं भांग जो घोटुं हाथों में छाले पड़ जावें !
शिव जी बोल पड़े अधिकार भाव से ;
तनिक रोष और तनिक प्रेम भाव से!
सुनो, देवी पार्वती, मेरी गौरा प्यारी ;
मेरे मन में बसी हो जैसे फुलवारी !
भंग घोटना तो है एक बहाना प्रिये ;
तुम को निरखूँ और बसाऊँ अपने हिये !
तू है मेरी अर्धांगिनी अति प्रिय गौरा ;
तुझ बिन न किसी पर अधिकार मोरा !
सुनकर शिव भोलेनाथ की मधुर बोली ;
गौरा विहंसी पर मुख से ना कुछ बोली !
ऐसी प्रीत पुरातन जो किंचित लखे कोई ;
मनभावन सहचर के संग अति सुख होई !
