मोहब्बत
मोहब्बत


बड़े अरसे बाद यूं राहत हुई है
दिल के दरवाज़े नई-सी आहट हुई है।
अजनबी इस कदर अपना लगा मुझे
जैसे पुराने यार की सोहबत हुई है !
वो कुछ मुझ-सा, कुछ खुद में दिवाना है
खुद में एक दुनिया पर दुनिया से बेगाना है !
गज़ब-सी तपिश है लफ़्ज़ों में उसके
जैसे उसी की आग से खिदमत हुई है !
हर एक लफ्ज़ में यूं नूर-सा है
जैसे पतझड़ में कोई गुल खिला है
उसकी कही-अनकही
हर एक बात से चाहत हुई है !
मिल जाए अगर तो बैठ के बातें ढेर सारी कर ले
यूं आईने से बस दो-चार मुलाकात हुई है !
वो सुलझा हुआ है या पहेली,
मैं महफिल की रौनक या अकेली।
कौन क्या है क्या पता
और जानने को वक़्त कहां !
हम तो भई आशिक है ठहरें,
मोहब्बत से न फुर्सत हुई है !
उसको पा लेना तो वैसे ख्वाब़ था सबका
बिन बताए पूरी मेरी हर इबादत हुई है !
बेदर्द जमाने से ठुकराई हुई मैं
आज फिर किसी के दिल में सियासत हुई है !
इस कदर मुझ ही में वो समाता चला गया
स्वयं को चाहूं या उसे ? बस मोहब्बत हुई है !