मनुष्य की भावनाएँ
मनुष्य की भावनाएँ
मनुष्य जीवन सजा हुआ है,
कितनी ही भावनाओं के साथ,
कभी प्रेम की भावना निराली,
तो कभी घृणा करे आघात।
हँसने से जहाँ दिल हलका हो,
वहीं चुगलियाँ करती पेट साफ,
रोने को जब बहुत जी मचले,
तब झूठ बोलना हो जाता माफ।
आत्मविश्वास की भावना से मन में,
हमेशा जगता प्रेम और विश्वास,
द्वेष की भावना गर आती तो,
समझो पूरा जीवन हो सत्यानाश।
सकरात्माक सोच से होती प्रशंसा,
उत्साह जीवन में उमंग भर देता,
आशावाद की भावना डर भगाती,
जीवन में अनेक खुशियाँ ले जाती।
कृतज्ञता से करते आभार महसूस,
संतुष्टि की भावना कल्याण का दूत,
उत्सुकता मन में कौतहूल मचाती,
हर ज़रूरत को पूरा करती जाती।
कुछ अनुचित हुआ हो अपने साथ,
तो रोष की भावना से हो मन आघात,
बदले की भावना से हम सब जीते,
सन्यासी वही जो कड़वे घूँट पीते।
