STORYMIRROR

Shailaja Bhattad

Abstract

3  

Shailaja Bhattad

Abstract

मनमुटाव

मनमुटाव

1 min
158

हर रोज मेरा कद बढ़ता है

हर रोज चादर में एक नया पेंच चढ़ता है।

मुझ पर तेरा ही असर दिखता है मां।

माँ मुझमें हर रोज मुझे नया कुछ दिखता है।


अजीब फितरत है लोगों की।

खुद बंद दरवाजों में रहते हैं।

और हमसे कहते हैं।

क्या बात है?

आजकल दिखते ही नहीं।


जिंदगी अगर मनमुटाव कर बैठी हो।

अपनों के सहलाने से भी ना संभलती हो ।

तब वक्त के हाथों सौंप देना ही समझदारी है ।

तसल्लियों भरी दवा की इस वक्त

 सिर्फ नाकामयाबी है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract