मनमुटाव
मनमुटाव
हर रोज मेरा कद बढ़ता है
हर रोज चादर में एक नया पेंच चढ़ता है।
मुझ पर तेरा ही असर दिखता है मां।
माँ मुझमें हर रोज मुझे नया कुछ दिखता है।
अजीब फितरत है लोगों की।
खुद बंद दरवाजों में रहते हैं।
और हमसे कहते हैं।
क्या बात है?
आजकल दिखते ही नहीं।
जिंदगी अगर मनमुटाव कर बैठी हो।
अपनों के सहलाने से भी ना संभलती हो ।
तब वक्त के हाथों सौंप देना ही समझदारी है ।
तसल्लियों भरी दवा की इस वक्त
सिर्फ नाकामयाबी है।
