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Anita Sharma

Abstract

4.5  

Anita Sharma

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मनमोहिनी

मनमोहिनी

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मेरी कल्पना में कहीं जो बसी है

वो मदमस्त थिरकती जो अपनी ही धुन में

फूलों सी महकती हर अदा में अभिव्यक्ति

मोहपाश में बांधे वो कजरारी निगाहें


हाँ तुम वही मेरी प्रियवंदिनी हो

हाँ तुम वही मेरी मनमोहिनी हो

क्या सुन्दर भंगिमाएं सभी तुम्हारी

हर सुर ताल पर ऐसे बन रही हैं


पुलकित मयूर नाच उठा हो कहीं

प्रेम रस ऐसे बरसा रही हो

हाँ तुम वही मेरी मनभावनी हो

हाँ तुम वही मेरी मनमोहिनी हो


वो ढोल की हर थाप पर

हौले हौले से जब पग रखती हो

मतवाली उस चाल से अपनी

रग रग में प्राण भरती हो


हाँ तुम वही मेरी संजीवनी हो

हाँ तुम वही मेरी मनमोहिनी हो

वो कोमल हाथों से भाव व्यक्त करना

करती हो नयी उमंग का संचार


मन आनंदित हो झूम उठता है

मानो पड़ने लगी हो सावन की फुहार

हाँ तुम मेरी कमलनयनी हो

हाँ तुम मेरी मनमोहिनी हो।


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