मंजिल
मंजिल
अंतर्द्वंद्व सा है,
मन खिन्न खिन्न सा।
सोच अटकी है कहीं,
कदम पीछे करने,
हो रहे ज़रूरी।
ख्वाब और ख्वाहिशें,
जड़ें जमाने लगे जब।
जब लगे,
हाथ थामना है मुश्किल,
तो दिल को ही थामा जाये।
हर रिश्ते का हो नाम,
हर सफर की मंजिल ऐसा ज़रूरी तो नहीं।