STORYMIRROR

Apoorva Singh

Abstract Inspirational

4  

Apoorva Singh

Abstract Inspirational

मंज़िल

मंज़िल

1 min
251

तू सपने देखना छोड़ ना देना

राह तू अपनी मोड़ ना लेना

रख हौसला खुद से तू

विश्वास अपना तोड़ ना देना।


उस पथ पे तू चलता चल

हों कांटे कितने भी

उस नभ की ओर बढ़ता चल

हो सांसें कितनी भी।


चलेगा तू चिकनी मिट्टी पे

तो मंजिल कभी ना पाएगा

पांव पड़ेगा गिट्टी पे

तो ही मन का खाएगा।


पड़ेंगे छाले पैरों में

परिहास बनेगा गैरों में

अपने कभी साथ ना देंगे

मदद का भी हाथ ना देंगे।


फिर भी तू निराश ना होना

जीते जी हताश ना होना

हो संघर्ष कितना भी

किसी भी पल उदास ना होना।


ये तो है एक परीक्षा

जो रब ने तेरे बनाई है

मिलेगी तुझे ऐसी शिक्षा

जो आजतक कभी ना पाई है।


तेरा दिन भी आयेगा

धैर्य रखना छोड़ ना देना

मंजिल तू भी पाएगा

चलते पांव रोक ना देना।


जीवन में कुछ बनना है 

तो अर्जुन जैसा करना है

हो कितनी भी रुकावटें

ध्यान ना भंग करना है।


हो मंजिल कितनी भी दूर

वापस नहीं लौटना है

हो कितनी भी बारिश

पांव नहीं फिसलना है।


तू सपने देखने छोड़ ना देना

राह तू अपनी मोड़ ना लेना

रख हौसला खुद से तू

विश्वास खुद से तोड़ ना देना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract