मन
मन
आदमी यहां पर बूढ़ा तब होता है
जब उसका यह मन बूढ़ा होता है
आदमी का मन गर जवां होता है
फिर वो अस्सी में भी युवा होता है
जब निराशा दीप प्रज्वलित होता है
आदमी युवा होकर भी बस रोता है
जिसका मन सकारात्मक होता है
आग भीतर भी वो शबनम होता है
जो विचारों में ही आंसू लिये होता है
वो दरियाभर गम छिपाए हुए रोता है
जो इस सूरत में उदासी लिये होता है
उसका अन्तः शीशा टूटा हुआ होता है
जो लाख बार हार, हिम्मत न खोता है
उसके आगे यह आसमां छोटा होता है
वो एक दिन नभ परिंदा परवाज होता है
जिसकी सोच में उम्मीद परिंदा होता है
जो जीवन में कभी रोना नहीं रोता है
वो सदा ही हंसता हुआ चेहरा होता है
किसी का मन गर निराशावान होता है
वो स्वर्ण पिंजरे के तोते समान होता है
जिसके मन में, संतोष बीज होता है
वो फ़टे कपड़ों में भी रईस होता है
वो ही शख्स खुद से दुःखी होता है
जो अपने इस मन से दुःखी होता है।
