मन
मन
मन से ही वात्सल्य संबद्ध है
क्योंकि मन मे माता -पिता आबाद है
मन में ही भगवान उपवेश करते है
मन लगने से दृढ़ कार्य भी सहज हो जाते है
यदि मन विघात तो विनयशील कार्य भी दुष्कर हो जाते हैं
ये सुख-दुख मन के ही पराधिन है
मन ही मनुष्य को वैकुंठ में विदा करता है
और मन ही जहन्नुम में सौंपता है
मन की बेइंतिहा ही ओज का बीज है
मन से ही प्रेम उपजता है
मन से ही लावण्य संगृहीत होता है
मन की स्थिरता ही सफलता का टीका है
मन की सकारात्मकता ही जीत का कारण है
और नकारात्मकता ही विनाश का कारण है
कुल मिलाकर मन ही इस मिट्टी के
शरीर का सर्जक है मतलब
मन की गैरहाजिरी में शरीर का कोई मूल्य नही है
इसलिए बिल्कुल सत्य कहा है कि
मन के हारे हार है
मन के जीते जीत।