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Ajay Singla

Abstract

4.3  

Ajay Singla

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मन

मन

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296


कहते हैं मन की गति

रौशनी से भी ज्यादा होती है

मन की तासीर हर वक़्त

चंचलता पे आमादा होती है

मन भागता पल में।


दूर बैठी माँ की छाँव में

दूर देश से प्रेमिका की बाँहों में

तपते रेगिस्तान से

कश्मीर की चारगाहों में

दुःख से सुख की पनाहों में

ले जाता हमें।


समुन्दर की गहराइओं में

पहाड़ों में, खाइओं में

अतीत की परछाइओं में

भविष्य की कठिनाइओं में

समेटता अपने अंदर।


दुःख दर्द सारे जहाँ का

किस्सा जमीं आसमान का

प्यार भाई, बहन और माँ का

फ़िक्र जाने कहाँ कहाँ का

ढूंढ़ता फिरता।


ख़ुशी गम के सागर में

 भरना चाहता उसे अपनी गागर में

शांति दुनिया की अशांति में

खुश है, रहना चाहता इस भ्रान्ति में

दुविधा में रहता क्योंकि,


जो करना चाहता वो करता नहीं

इच्छाओं का घड़ा कभी भरता नहीं

जो मिला उस में खुश होता नहीं

इसलिए कभी चैन से सोता नहीं।


अगर मन 

प्यार की टकसाल हो जाए

सबके लिए प्रेम बहाल हो जाए

ख़ुशी से मालामाल हो जाये

जिंदगी कितनी खुशहाल हो जाये।


कहते हैं मन की हजार आँखें होती हैं

हर वक़्त जगती हैं कभी नहीं सोती हैं

कहते हैं मन संभालता है वहां,

जहाँ प्रकृति और एकांत होता है

बार बार समझाने से मन शांत होता है।


कभी बहुत कठोर,

कभी बहुत कोमल हो जाता है

करुणा और प्यार इसे और भी

सुंदर बनाता है।


मन का अपना धर्म और

अपना ही ईमान होता है

उसको साधने वाला सिर्फ

एक भगवान होता है।



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