मन मौजी
मन मौजी
मन मौजी को मालूम नहीं,
किस राह पे उसको जाना है,
दुख सुख की उसको परवाह नहीं,
जीवन बहती धारा सा है,
चाहत का मंज़र, विशाल नहीं,
हस्ता गाता वो रहता है,
मुख पर उज्वल कोई तेज नहीं,
ना चिंता ना द्वेष ही पाया है,
दूजे की दुनिया में खोया नहीं,
अपना भी कुछ छूटा नहीं,
मन मौजी को मालूम नहीं,
किस राह पे उसको जाना है,
स्थिरता उसकी काया में नहीं,
चंचल सी उसकी छाया है,
वो ख्वाबों में, गलियारों में नहीं,
बस खुशियों में झूमा रहता है,
मन मौजी है, बस मन मौजी सा,
खुद में खोया रहता है,
मन मौजी को मालूम नहीं,
किस राह पे उसको जाना है।